Thursday, October 30, 2025

भारतीय सिनेमा के जन्मदाता - व्ही. शांताराम

 


बात है १९०१ की जब भारतीय सिनेमा ने अपने विकास और वृद्धि के लिए एक सुशील और सर्वगुणसंपन्न सुकुमार के लिए पुकार लगाई। तब सिनेमा की मंशा पूर्ण करने हेतु इस भारतवर्ष में जन्में वह यशोमान - जिनका नाम था शांताराम राजाराम वांकुंद्रे। मात्र १८ वर्ष की आयु में ही उन्होंने स्वयं को सिनेमा के विकासकार्य में समर्पित किया और उनकी मेहनत, श्रद्धा, विचारधारा से सिनेजगत का कायापलट हुआ। इसीलिए, उनको *'चित्रपति'* इस शीर्षक की उपाधि दी गयी। तथापि, अपने सह कलाकारों के लिए वह अण्णासाहब थे, दर्शकों के लिए प्यारे शांताराम बापू थे और सिनेविश्व और अपनी सिनेमा के लिए वह थे 'व्ही.शांताराम!'

व्ही.शांताराम जी ने हिंदी तथा मराठी सिनेजगत को अपने सपनों द्वारा जन्म दिया, विचारधाराओं द्वारा पालन-पोषण किया और परिश्रम द्वारा सफलता की ऊँचाई तक पहुँचाया। १९२७ तक उन्होने मूकफिल्मों द्वारा सिनेजगत के लिए अपना योगदान दर्शाया। किन्तु, जैसे एक माँ अपने बच्चे के जन्म के बाद उसे बोलना सिखाती है, उसी भांति व्ही.शांताराम जी ने मूकफिल्मों द्वारा भावना और संवाद, यानी शब्दों का गठबंधन किया और भारत की पहली मराठी सवाक चलचित्र : '''अयोध्येचा राजा' की १९३२ में निर्मिती प्रक्रिया पूर्ण कर उसकी प्रसिद्धि की। इसी फिल्म से मराठी सिनेजगत की सफलता का दौर शुरू हुआ। यह फिल्म प्रभात फिल्म कंपनी द्वारा निर्मित की गई थी। व्ही.शांताराम जी के साथ ही विष्णुपंत दामले, केशवराव धायबर, एस. फतेहलाल और इस. व्ही. कुलकर्णी यह भी इस सफलता के हिस्सेदार है।

इस फिल्म द्वारा उन्होंने स्वयं को योग्य निर्देशक सिद्ध किया; अपितु, वह हर कला के ज्ञाता थे। ऐसा कहा जाता है कि 'हरफन मौला, हरफन अधूरा', अर्थात हर काम काज आता है, किन्तु किसी एक में भी माहिर नहीं; लेकिन, इस कहावत को व्ही. शांताराम जी ने असत्य सिद्ध किया। वे सिनेक्षेत्र की हर एक कला के ज्ञाता भी थे, और उसमें निपुण भी थे। वे अभिनय, संगीत, पृष्ठभूमि, फिल्म प्रौद्योगिकी, लेखन, निर्मिती, आदि क्षेत्र में भी कुशल थे। उन्होंने कला के हर क्षेत्र में प्रवेश कर ज्ञान को अर्जित किया तथा इस कहावत को उन्होंने अपने कार्यसिद्धि से पुनः परिभाषित किया: 'हरफन मौला, हरफन सर्वगुणसंपन्न’।

'व्ही.शांताराम' इस महानुभाव ने हर तरह से सिनेमा को समृद्ध किया। इस कार्य को निरंतर रखने के लिए उन्होंने स्वयं की राजकमल कलामंदिर, इस निर्मित संस्था की स्थापना की। १९६२ में इनके सुपुत्र किरण शांताराम जी ने व्ही.शांताराम प्रोडक्शन्स प्राइवेट लिमिटेड की अलग से स्थापना की और फिल्में बनाने का कार्य निरंतर रखा। इस बैनर की पहचान थी कि, आरंभ में एक सुकुमारी सूर्योदय के समय विशाल सागर की गोद में खिलते हुए कमल के पुष्प से प्रगट होती है तथा अपने हाथों से समुद्र और एक पक्षी पर धन की वर्षा करती है। तब मुझे शांताराम बापूजी की याद आती है। इस कन्या की ही भांति, शांताराम बापू जी सूर्योदय के समय (जो भारतीय सिनेजगत के उदय और उन्नति को दर्शाता है) विशाल सागर (जो कलाविश्व की अखंडता दर्शाता है) की गोद में बसे हुए कमल पुष्प से (जो सिनेमा दर्शाता है) उस कन्या की भांति स्वयं शांताराम जी का जन्म होता है, और वह अपनी हाथों (भाग्य की रेखा) में बसी कला से धन अर्थात ज्ञान, समृद्धि, विचार, नवचेतना, आदि उस पक्षी की भांति ही श्रोतागण और दर्शकों पर वर्षा करते हैं।

-आर्यन पाध्ये

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