Monday, October 2, 2023

लाल बहादुर शास्त्रीजी

 
लाल बहादुर शास्त्रीजी


 





 लाल बहादुर शास्त्री, भारतीय इतिहास में अंकित एक नाम, सादगी, अखंडता एवं अपने राष्ट्र के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के प्रतीक में खड़ा है l ऐसी दुनिया में जहां अक्सर बड़ी राजनीतिक हस्तियों का दबदबा रहता है, शास्त्री जी के विनम्र आचरण ने चरित्र की उसे उल्लेखनीय ताकत को झुठला दिया, जिसने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को परिभाषित किया l 
          श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म २ अक्टूबर, १९०४ को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से थोड़े दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय मे हुआ था l उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे l जब लाल बहादुर शास्त्री डेढ़ वर्ष के थे तभी दुर्भाग्य से उनके पिता का देहांत हो गया था l पिता के देहांत पश्चात उनकी माता ने ही अपने बच्चों का संगोपन किया था l स्कूली शिक्षा पूरी होते ही उन्हें वाराणसी में चाचा के घर उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त करने हेतु भेज दिया गया l
          बहुत पहले से ही लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी द्वारा अत्यंत प्रभावित थे l गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने हेतु उन्होंने अपनी पढ़ाई तक छोड़ दी, तब वह केवल १६ वर्ष के थे l शास्त्री जी ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किए गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्यापीठ में शामिल हुए थे l यहां वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए थे l विद्यापीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री प्राप्त हुई जिसका नाम 'शास्त्री' था, लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया l
आजादी के बाद जब कांग्रेस सरकार सत्ता में आई, तब उनके सक्रिय सहभागी एवं अनुशासन को देख उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। जल्द ही उन्हें गृह मंत्री के रूप में भी नियुक्त किया गया । शास्त्री जी मानते थे कि अनुशासन और एकजुट से किए कार्य ही राष्ट्र की ताकत का असली स्रोत है । उनकी यही कड़ी मेहनत करने की क्षमता एवं दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई । १९५० के दशक के आसपास उन्हें रेल मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था ।उनके कार्यकाल में दो बड़ी रेल दुर्घटनाओं के बाद शास्त्री जी ने यह अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझकर इस्तीफा दे दिया । तब नेहरू जी ने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया कि जो कुछ हुआ वह इसके जिम्मेदार है बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इसे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी।
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय इतिहास में एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे, जो अपनी सादगी, निष्ठा और राष्ट्र के कल्याण के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे। प्रधान मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल संक्षिप्त होते हुए भी देश पर एक अमिट छाप छोड़ गया। १९५६ के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान शास्त्री के नेतृत्व ने भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया, जबकि उनका प्रसिद्ध नारा "जय जवान जय किसान" देश के विकास में सशस्त्र बलों और कृषि दोनों के महत्व का प्रतीक है।
           इसके अलावा, ताशकंद समझौते पर बातचीत में शास्त्री की भूमिका ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शांतिपूर्ण कूटनीति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। ताशकंद में उनका आकस्मिक और असामयिक निधन साज़िश और अटकलों का विषय बना हुआ है, जिससे भारतीय राजनीति में एक खालीपन आ गया है जिसे कई लोग आज भी श्रद्धा से याद करते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री की विरासत नेताओं और नागरिकों की पीढ़ियों को समान रूप से प्रेरित करती है, हमें विनम्रता, ईमानदारी और राष्ट्र की सेवा के मूल्यों की याद दिलाती है। उनका जीवन और योगदान आशा की किरण और प्रगति और समृद्धि की दिशा में भारत की यात्रा में नेतृत्व और बलिदान की स्थायी भावना के प्रमाण के रूप में काम करता है।
           वह हमेशा अपनी उक्ति पर कायम रहे जो कि थी - 
"देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है l और यह पूर्ण निष्ठा है क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता की बदले में उसे क्या मिलता है l"
          ऐसे आदर्श नेता श्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती निमित्त हमारा शत-शत अभिवादन l

             - चैत्राली तुळजापूरकर.


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